लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में रिक्त आठ
आयुक्तों की नियुक्ति दिन प्रतिदिन नए विवादों में फंसती जा रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने इस सम्बन्ध में कई सवाल उठाए हैं। (19:46)
प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा
पहले नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें शैक्षणिक योग्यता
अनिवार्य की गई। फिर संशोधित विज्ञापन जारी कर शैक्षणिक योग्यता की
अनिवार्यता को समाप्त किया गया तथा अभ्यर्थियों से दो हजार रुपये शुल्क
लेने के बावजूद चयन के आधार पर नियुक्तियां करने के स्थान पर नामांकन के
आधार पर नियुक्तियां करने की प्रक्रिया अपनाई जा रही है।
उर्वशी
शर्मा के मुताबिक इससे पता चलता है कि सरकार की मंशा इन नियुक्तियों की
प्रक्रिया में इतनी गलती कर देने की है कि उन्हें न्यायालय में चुनौती देकर
कोई भी रुकवा सके और सरकार सूचना के अधिकार के दवाव से मुक्त रह कर मनमानी
कर सके।
उर्वशी के मुताबिक यदि योग्यता के आधार नियुक्ति की जाती
तो समिति में मतभेद का प्रश्न ही नहीं था। समिति के सदस्यों द्वारा इतना
अधिक मतभेद होना कि निर्णय लेना भी सम्भव न हो, सिद्ध करता है कि समिति चयन
नहीं कर रही है बल्कि मोलभाव कर नामांकन हो रहे हैं, जो किसी भी हालत में
स्वीकार्य नहीं है।
उर्वशी ने बताया कि उन्होंने बीते 19 अगस्त को
सूबे के मुखिया को सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में नियमानुसार आरक्षण
व्यवस्था लागू करने का अनुरोध किया था। यह पत्र नियमानुसार प्रशासनिक सुधार
विभाग को संदर्भित होना चाहिए था, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय ने उस समय
यह पत्र जानबूझकर सूचना विभाग को अंतरित किया ताकि आरक्षण के सम्बन्ध में
ससमय निर्णय न लिया जा सके और प्रकरण उलझा रहे।
उर्वशी के मुताबिक
अब सूचना विभाग के संयुक्त सचिव डॉ. अनिल कुमार ने मुख्यमंत्री द्वारा
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में आरक्षण व्यवस्था लागू करने सम्बन्धी उनके
मांग पत्र को प्रशासनिक सुधार अनुभाग-2 के सचिव को आवश्यक कार्यवाही के लिए
अंतरित किया है। सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में मुख्यमंत्री
की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की बैठक हो चुकी है और आठ नामों की
संस्तुति राजभवन को किए जाने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। ऐसे में
प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा इस पत्र पर कार्रवाई किए जाने की स्थिति में
सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में और विलंब होने की सम्भावना है।
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