Sunday, November 10, 2013

आज़म की मातहतों से बदसलूकी का मामला राज्यपाल तक पहुंचा

आज़म की मातहतों से बदसलूकी का मामला राज्यपाल तक पहुंचा



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  • Friday, 01 November 2013 23:16
  • लखनऊ: उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री मो. आजम खान द्वारा मातहतों से किए गए बदसलूकी मामले में मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव से किसी निर्णय की कोई आशा दिखाई नहीं देने का आरोप लगाते हुए सोशल एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने राज्यपाल बी.एल. जोशी को ज्ञापन भेजकर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप कर मामले की त्वरित जांच कराकर नियमानुसार दण्डित कराने की मांग की है। उर्वशी ने कहा है कि मीडिया से प्राप्त समाचारों के मुताबिक आजम खां के निजी सचिव जीवन सिंह नेगी और विजय बहादुर सिंह, अतिरिक्त निजी सचिव अवधेश कुमार तिवारी, एम.एन. झा, सर्वेश कुमार मिश्रा, मो. नईम सिद्दीकी तथा एस. प्रजापति ने शासन को पत्र लिखकर अपने-अपने स्थानान्तरण की मांग तक कर डाली है। 

    सचिवालय प्रशासन के सचिव को लिखे पत्र में इन व्यक्तियों ने खां के व्यवहार पर यह आरोप लगाते हुए आपत्ति जताई है कि  खां प्राय: दुव्र्यवहार के साथ ही अपशब्दों का प्रयोग भी करते हैं। उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेन्द्र मिश्र ने भी इस मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुख्य सचिव जावेद उस्मानी से हस्तक्षेप करने की मांग के साथ साथ यह अवगत भी कराया है कि सचिवालय के सभी निजी सचिव और निजी सचिवों ने खान के साथ काम नहीं करने का निर्णय लिया है।

    उर्वशी ने ज्ञापन में लिखा है कि  प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से प्राप्त समाचारों के मुताबिक श्री आजम खान के निजी सचिव जीवन सिंह नेगी और विजय बहादुर सिंह, अतिरिक्त निजी सचिव अवधेशकुमार तिवारी, एमएन झा, सर्वेश कुमार मिश्रा, मो. नईम सिद्दीकी तथा  एस प्रजापति ने शासन को पत्र लिखकर अपने-अपने स्थानान्तरण की मांग तक कर डाली है। सचिवालय प्रशासन के सचिव को लिखे पत्र में इन व्यक्तियों ने आज़म खां  के व्यवहार पर यह आरोप लगाते हुए  आपत्ति जताई है कि आज़म प्रायः दुर्व्यवहार के साथ ही अपशब्दों का प्रयोग भी करते है।उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेन्द्र मिश्र ने भी इस मामले में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव और मुख्य सचिव जावेद उस्मानी से हस्तक्षेप करने की मांग के साथ साथ यह अवगत भी कराया है  कि सचिवालय के सभी निजी सचिव और अपर निजी सचिवों ने श्री खान   के साथ काम नहीं करने का निर्णय लिया है|

    श्री आज़म द्वारा किये जाने बाले  दुर्व्यहार का यह मामला कोई नया नहीं है| इससे पहले भी नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री सी0 बी0 पालीवाल तथा स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कुमार भी आज़म के दुर्व्यहार के शिकार हो चुके हैं|

    मेरे अनुसार एक कैबिनेट मंत्री के सारे के सारे निजी स्टाफ का उसके  साथ काम करने से मना कर देना एक गंभीर मामला है और श्री आज़म के द्वारा दुर्व्यहार कर मातहतों का उत्पीड़न करने के इस मामले में   मुख्यमंत्री को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए किन्तु आश्चर्य है कि राजाराम पाण्डेय प्रकरण में तत्काल कार्यवाही करने वाले मुख्यमंत्री अब कानों में तेल डाले बैठे हैं ।

    आखिर प्रदेश में लोकशाही कायम है और जनता को सच जानने का हक़ है| प्रदेश एक कैबिनेट मंत्री से जुड़े इस अतिसंवेदनशील मामले में दोनों पक्षों को आमने सामने बैठा कर कुछ घंटों में जांच पूरी कर दोषी के विरुद्ध कार्यवाही कर प्रकरण का पटाक्षेप किया जा सकता है पर शायद सूबे के मुखिया की मंशा मामले को लटकाकर ठन्डे बस्ते में डाल देने की है| मुझे आश्चर्य है कि उत्तर प्रदेश  में क्या ये वही मुख्यमंत्री हैं जिसे प्रदेश की जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ सत्ता सौंपी थी  ?

    मेरा यह मानना है क़ि इस मामले में मुख्यमंत्री द्वारा निर्णय न लेने से पूरे विश्व में उत्तर प्रदेश की और इसके वाशिंदों की छवि ख़राब हो रही है जिसकी तस्दीक विदेशों में रह रहे भारतीयों से की जा सकती है| 
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