Sunday, November 10, 2013

जेल सुधार पर कटघरे में यूपी सरकार

जेल सुधार पर कटघरे में यूपी सरकार

http://bhadas4media.com/state/up/lucknow/15561-2013-11-01-06-30-31.html

                                                                      उत्तर प्रदेश में जेलों की हालत बहुत खस्ताहाल है. जेलों में क्षमता से अधिक कैदी रखे गये हैं. जितने सजायाफ्ता कैदी हैं उससे दो गुना ऐसे कैदी बन्द हैं जिनके मामले अभी न्यायालय में विचाराधीन हैं. जेलें सुधार गृह के नाम पर यातना गृह हो गयी हैं. सरकार जेल सुधार के नाम पर कुछ भी नहीं कर रही है. ये कैदियों के मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है. उर्वशी शर्मा ने इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को सम्बोधित तथा राज्यपाल एवं मुख्य सचिव को मांगपत्र की प्रति मेल से भेजकर दण्ड संहिता की धारा 436(क) के तहत जेलों की व्यवस्था सुधारने की मांग की है.  

सामाजिक एवं आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा के द्वारा पिछले अप्रैल में सूचना मांगे जाने पर उपमहानिरीक्षक कारागार मुख्यालय श्री शरद ने बीते जून में सूचना दी प्रदेश की जेलों में 81027 कैदी हैं तथा प्रदेश की जेलों में केवल 48298 कैदियों के रखने की क्षमता है. स्पष्ट है कि प्रदेश की जेलों में कैदियों की 167 प्रतिशत से अधिक ओवरक्राउडिंग है. इससे पूर्व 2010 में सूचना दी गयी थी कि 44439 कैदियों के रखने की क्षमता के विरुद्ध 83805 कैदी जेलों में निरुद्ध थे. पिछले तीन साल के जेल सुधार की स्थिति कि जेलों की क्षमता में मात्र 3859 की वृद्धि हुई है और इस बीच 2778 कैदी कम हुए हैं. जेलों में बन्द दो तिहाई कैदी ऐसे हैं जिनके मामले न्यायालय में विचाराधीन है. प्राप्त सूचना के अनुसार दोषसिद्ध कैदियों की संख्या 25567 तथा विचाराधीन कैदियों की संख्या 55460 है. ये कैदी केवल न्याय में हो रही देरी की वजह से जेलों में बंद है जो इनके मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है. जजों की संख्या में कमी के चलते इन कैदियों की सुनवाई का नंबर ही नहीं आता है और ये वर्षों ऐसे ही जेलों में बंद रहते हैं. प्राप्त सूचना के अनुसार गोरखपुर में 22, एटा में 11, फतेहपुर में 5, सीतापुर में 17 तथा खीरी की जेल में 27 ऐसे कैदी निरुद्ध हैं जो विधि के द्वारा उस अपराध की अधिकतम अवधि का आधे से अधिक दोषसिद्ध होने के पहले ही भोग चुके हैं. यहां ध्यान देने की बात है कि दण्ड प्रक्रिया की धारा 436(क) उस अधिकतम अवधि का स्पष्ट निर्धारण करती है जिसके लिये किसी भी विचाराधीन कैदी को निरुद्ध किया जा सकता है. जहां कोई भी कैदी मृत्युदण्ड के अतिरिक्त विधि के अधीन ऐसे किसी भी अपराध के लिये जांच या अन्वेषण की अवधि के दौरान अपराध के लिये निर्दिष्ट अवधि का आधे से अधिक भोग चुका हो, वहां वह प्रतिभुओं सहित या सहित या रहित बंध पत्र पर छोड़ दिया जायेगा. उर्वशी शर्मा नें सरकार को दण्ड प्रक्रिया की धारा 436 (क) के तहत कैदियों के मानवाधिकारों का हनन रोकने के लिये प्रदेश की सभी जेलों में 50 प्रतिशत से अधिक सजा काट चुके विचाराधीन कैदियों एवं एनके परिवारीजनों को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 436(क ) के प्राविधानों की पूरी जानकारी प्राप्त कराने की व्यवस्था आरम्भ करने ,प्रदेश की सभी जेलों में 50 प्रतिशत से अधिक सजा काट चुके विचाराधीन कैदियों की अद्यतित सूची प्रतिमाह जेलों में नोटिस बोर्ड पर चस्पा करने, जेल विभाग की वेब साईट पर अपलोड करने, शासन को प्रभावी अनुश्रवण हेतु उपलब्ध कराने की व्यवस्था आरम्भ करने एवं लोक-अभियोजकों को 50 प्रतिशत से अधिक सजा काट चुके विचाराधीन कैदियों की जमानत के सम्बन्ध में समुचित कार्यवाही करने हेतु शासन स्तर से निर्देश जारी करने की मांग मुख्यमंत्री को भेजे अपने मेल में की है.



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